घृणित नाटकीय मंच के पर्दों को हम उठाकर ही रहेंगे ! घृणित नाटकीय मंच के पर्दों को हम उठाकर ही रहेंगे !
स्वर्णिम पल तप कर अनुभव की भट्ठी में। स्वर्णिम पल तप कर अनुभव की भट्ठी में।
और तीस साल इंतजार कर रे कलम, सब्र कर। और तीस साल इंतजार कर रे कलम, सब्र कर।
गृहस्थ, समाज, रिश्ते निभाती सर्वस्व अपना न्योछावर करती गृहस्थ, समाज, रिश्ते निभाती सर्वस्व अपना न्योछावर करती
इश्क़ में इंतजार नेमत है कि ये जितना विस्तृत हो उतना बेहतर। इश्क़ में इंतजार नेमत है कि ये जितना विस्तृत हो उतना बेहतर।
सोचें - क्यों आजकल कुछ पत्थर से हो गए हम? सोचें - क्यों आजकल कुछ पत्थर से हो गए हम?